राम रक्षा स्तोत्र में वर्णित हनुमान मंत्र मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।। श्लोक का अर्थ : जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्दिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवनपुत्र वानरों में प्रमुख श्रीरामदूत की मैं शरण लेता हूं। ।।दोहा।। पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।। श्लोक का अर्थ : हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए। मार्कण्डेय पुराण में वर्णित हनुमान जी का ध्यान मंत्र ॥ श्री हनुमत ध्यानम् मार्कण्डेयपुराणतः ॥ मरकत मणि वर्णं दिव्य सौन्दर्य देहं नखरदशनशस्त्रैर्वज्रतुल्यैः समेतम् । तडिदमलकिरीटं मूर्ध्नि रोमाङ्कितं च हरितकुसुमभासं नेत्रयुग्मं सुफुल्लम् ॥ १॥ अनिशमतुलभक्त्या रामदेवस्य योग्या निखिल गुरु चरित्राण्यास्य पद्माद्वदन्तम् । स्फटिक मणि निकाशे कुण्डले धारयन्तं गजकर इव बाहुं रामसेवार्थजातम् ॥ २॥ अशनिसमद्रढिम्नं दीर्घवक्षःस्थलं च नवकमलसुपादं मर्दयन्तं रिपूंश्च । हरिदयितवरिष्ठं प्राणसूनंग बलाढ्यं निखिलगुणसमेतं चिन्तये वानरेशम् ॥ ३॥ इति मार्कण्डेयपुराणतः श्रीहनुमद्ध्यानम्